मंगलवार, 28 मई 2013

सम्बन्धक अंकुरण में


सम्बन्धक अंकुरण में,
जे स्वांगक मैट मिल्बैत छैथ,
कुटिलताक मुस्की,
आ आरोपक चुश्की,
स कठोर प्रहार करैत छैथ,
से सायद बिसैर गेल छैथ,
जे बबुर रोपला स,
कांट धसबे टा करैत छै,
आ बिना स्नेह स सिंचित सम्बन्ध,
 समयक उतरार्ध में,
तिरस्कृत कांटक हाथ-पात बनबैत छै,
जे छूलो मात्र स घावे-घाव करैत छै,
बिधि के बिधान स,
कस्ट सहैत,
निरीह-सहज-सरल राम स,
हर युग में रावन मरै छै,
जे सब स पैघ आ बलशाली,
धनवान आ चालाक छै,
अपने अहंकार स,
अपन सर्वनाश करैत छै, 

मंगलवार, 14 मई 2013

सब स बरका रोग

हम पुत्रक पिता छि,
हमरो किछ मज़बूरी अईच्छ,
आ संक्रमित छि,
सब स बरका रोग स,
की कहत सब लोक स,
 हमरा त किछ नै चाही,
मुदा,
लोक लाज किछ होइत छैक,
जेबर बिहीन कन्या,
सुन्दर कोना लगती,
कुलीन छैथ, शुशील छैथ,
पढ़ल लिखल अस्थिर छैथ,
हमरा लेल सम्पूर्ण छैथ,
 मुदा,
हम कोना मुह देखायब,
समाज की कहत,
फल्लंl बाबू ,
जे पुतहु लौला,
तन स्वर्ण विहीन छैन,
मुद्रा माला हिन्,
विदुषी रंग विहीन,
धुर छि धुर छि धुर छि,
!!!!!!!!!!
आ एकटा अओर डर,
जे आदर्श विवाह स,
लोक-समाज अनुमान लगबैत छैथ,
जे जरूर लड़का में किछ ऐब हेतैक, 
आ याह बात हुनका दिन राति,
बिछुक डंकक टिस मारैत छैन,
 आ हुनकर दिमाग में,
धुर छि धुर छि धुर छि,
!!!!!!!!!!
सत्ते कहैत छि,
हम विश्मित छि,
पुत्रक पिताक दुःख स दुखित छि,
मुदा ई प्रश्न झक्झोरैत अई,
की समाज हुनका बाध्य करईत छैन ?
वा समाजक आर में वो समाज के,
अपन लोभ के नव-नव रंग स रंगी ढोरी क,
पुत्रक पिता बनबैत छैथ एक इंद्रजाल,
आ सम्पूर्ण समाज ओही जाल में फंशल,
एक दोसर के बारी के करैत छैथ इंतजार,
एक दोसर के बिना फसौने,
मुक्ति कहाँ अई सृष्टि सं,  
अद्भुत लीला अई,
विवाहक ई खेला अई,