शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

अपन ह्रदय के आकश बनाऊ

बंद करू,
एक दोसर के,
प्रताड़ित करव,
अपन अहँकार ,
एक दोसर के झरकैब,
याद राखु,
अंततः अहाँ ,
स्वयं के दुखी करैत छी,
कोणठा  में नुका-नुका कनै छी,
मरल मूस के कतवो झापव,
दुर्गध घेरवे टा करत,
ओही स्मृति पर नै इतराउ,
जे अहाँक खुशी के ग्रसने अई,
"बिसरू" खुद के सुखी करू,
एक टा बात पुछू ?
खिसियाब नै ?
कहीं अहाँ भीतर डेरैल नै छी,
अपने बात में हेरैल नै छी,
अपने अइन ओझरैल नै छी,
कहीं अपने व्यवहार अशांत नै छी,
लोक पर जादू चला लेब,
मुदा भीतर के शर्मिंदगी केना बचव,
खाली करू स्वयं के भीतर ,
साफ करू स्वयं के भीतर ,
एक बेर चुप रहै के,
प्रयाश करू भीतर ,
लोक के चुप करेनाई बड्ड आसान छै,
स्वयं के बड्ड कठिन,
एक बेर स्वयं के पुछियौ सही,
की सचमुच अहाँ के निक लगैया,
जहन लोक अहाँ  डेराइया,
कही अहाँ अई भ्रम में नै छी,
जे अहाँक धौंस ,
अहाँक कायरता झपाइया,
खुद के बुरबकी उबरु,
कनि ऊपर देखियौ,
खुला आसमान,
किछ फुसफुसा ,
अहाँक कान में कहैया,
हठ छोड़ू
दुनू हाथ फैलाऊ,
अपन ह्रदय के आकश बनाऊ,
आ सब पर अपन अमृत बरसाउ,

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

ईस्वर अहाँ अदभुत छि

ईस्वर अहाँ अदभुत छि,
अहाँक रचना अदभुत अई,
कियो प्रहार करैया,
कियो सहैया,
कियो प्रतिकार करैया,
कियो चुप रहैया,
कियो देखैया,
कियो अन्देखि करैया,
कियो प्रेम,
कियो घृणा,
कियो सच,
कियो झूठ,
कियो धर्म,
कियो अधर्म,
.......
कतेक सुंदर अई,
जेकरा जाही लेल रचने छि,
से सैह टा करैया,
मुदा हमरा किएक,
एतेक बुरबक बनेलओं,
जे हम निष्कर्ष अहाँ में नै ढूढई छि ?