रविवार, 3 मई 2015

चुप रहव ओकर मजबूरी छै

बाबू यौ,
हमरा बड्ड डर होएत अई,
हम विवाह नै करब,
से कियाक ?
हम रीढ़ विहीन छी,
पुरषार्थ हीन छी,
छोट-छोट बात,
जे लोक ने बुझैत अई,
अपने सब में दबल अई,
से उघार जैत,
एक "स्त्रिओहो दोसर ठाम ,
नै नै नै.....
आहा बेटा अधीर ने होउ,
चालीस साल यैह देखैत छी,
लोक के जेबी में रखैत छी,
नै घबराऊ नै डेराउ,
हम एखन तक जीबैत छी,
हम अहाँक विवाह करैब,
तैक लेब एहन घर,
जे मजबूर हैत,
कमजोर हैत,
सज्जन भावना शील हैत,
तेकरा ठकब  कोनो  कठिन नै,
मीठ-मीठ बाजब,
निक-निक बाजब,
ओकरे सन-सन  बात करब,
एक बेर जे फसत जाल में,
फेर नै उबरअ देबै,
बौक-बताह-झूठठर-चोर,
सब आरोप रैंग देबै,
पंचैती में सैन देबै,
एखनहुँ रिस्ता टुटब डर ,
चुप रहव ओकर मजबूरी छै,
माफ़ी मंगवे टा करतह,
तोरे पर सबटा छोड़ी देतह,
फेर अस्थिरता ,
तोड़ी देबै सब टा  रास्ता,
काटी देबै मै-बाप-भै ,
फेर गाँधीक बानर जँका,
तोरे कहल पर बस "टहल-टिकोरा"…..
एक टा बात जुनि बिसरह ,
तोँ केहनो पुरुष छह,
समाजक "अहंग " तोरे पर छै,
तै स्त्री सदैब तोहर अधीन
चिंता हमरा करअ दैह,
तोँ बस वियाहक तैयारी....

बुधवार, 19 नवंबर 2014

जटिल मनोविज्ञान

मैथिल लोकक,
जटिल मनोविज्ञान में,
भूतिया जैत छि हम,
कोनो और छोर नै भेटैत अई,
ओ फुहर बाकपटूता,
डिवियाक धुऐंल इजोत में
इतिहासक पुरान-फाटल पन्ना,
स अर्थ-अनर्थक,
बासी बेसन स,
गोल-गोल, घुमैल-घुमैल,  
बुझु मिठो ततेक जे जहरे भ जै,    
अलंकारक रसक चासनी में डूबैल,
जिलेबी जंका गप्प,
घमंड स फुलल,
कड़-कड़ करैत,
जेकर ने त स्वादे लेल होइत अई,
आ ने पचेवाके सामर्थ अई,

शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

अपन ह्रदय के आकश बनाऊ

बंद करू,
एक दोसर के,
प्रताड़ित करव,
अपन अहँकार ,
एक दोसर के झरकैब,
याद राखु,
अंततः अहाँ ,
स्वयं के दुखी करैत छी,
कोणठा  में नुका-नुका कनै छी,
मरल मूस के कतवो झापव,
दुर्गध घेरवे टा करत,
ओही स्मृति पर नै इतराउ,
जे अहाँक खुशी के ग्रसने अई,
"बिसरू" खुद के सुखी करू,
एक टा बात पुछू ?
खिसियाब नै ?
कहीं अहाँ भीतर डेरैल नै छी,
अपने बात में हेरैल नै छी,
अपने अइन ओझरैल नै छी,
कहीं अपने व्यवहार अशांत नै छी,
लोक पर जादू चला लेब,
मुदा भीतर के शर्मिंदगी केना बचव,
खाली करू स्वयं के भीतर ,
साफ करू स्वयं के भीतर ,
एक बेर चुप रहै के,
प्रयाश करू भीतर ,
लोक के चुप करेनाई बड्ड आसान छै,
स्वयं के बड्ड कठिन,
एक बेर स्वयं के पुछियौ सही,
की सचमुच अहाँ के निक लगैया,
जहन लोक अहाँ  डेराइया,
कही अहाँ अई भ्रम में नै छी,
जे अहाँक धौंस ,
अहाँक कायरता झपाइया,
खुद के बुरबकी उबरु,
कनि ऊपर देखियौ,
खुला आसमान,
किछ फुसफुसा ,
अहाँक कान में कहैया,
हठ छोड़ू
दुनू हाथ फैलाऊ,
अपन ह्रदय के आकश बनाऊ,
आ सब पर अपन अमृत बरसाउ,