रविवार, 6 मार्च 2011

आऊ चलु


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 आऊ चलु,
हाथ पकरु,
मोन मिलाउ,
विश्वाष बढाऊ,
सत्यक सोझ दिशा में,
चलैत चलि … चलैत चलि,
प्रयाश करी,
एक दोसर के गीत सुनी,
एक दोसर के मीत बनी,
अहँ जरा,
ओकर भस्म लगा,
प्रेमक रश मे स्नान करी,
रँग रुप,
कोनो ऊँच नीच ने,
सहज भाव स,
झुमि ऊठी,
आँग-समाँग,
ज्ञाण-विज्ञान,
कला-श्रीजन के ध्यान करी,
जिवनक रौद-बसात के,
मोनक सब मलाल के,
भरीभरीक पिचकारी मे,
रंग स सराबोर करी,
जीवन पथ पर सँगे-सँगे,
चलैत रही...चलैत रही |




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