रविवार, 2 जून 2013

हंसै बाला सदिखन हंसै छैथ .....

पता नई कियाक,
लोक अपन कुंठा,
भीतरके खीज,
खिसियाल बिलारी जंका,
उछन्नर पर उछन्नर स,
दोसर के निचा देखाबै लेल व्याकुल,
फुहर स फुहर हरकत करैत-करैत,
अपना के कहिया,
नीच बना लेत छैथ,
हुनका पतो नई चलैत छैन,
अपन सफलताक मद में चूर,
तुलना स तुस्ट,
केना सफलताके,
अपने स ठोकर मारैत छैथ,
बेहोस उन्घैत चलैत-चलैत,
दुखक गर्त में पहुंची,
असगरे अपन बदहाली पर शर्मिंदा,
अपन हार पर माथ पटकै छैथ,
हुनकर दुःख,
अहू दुआरे किछ बेसी टीस मारैत छैन,
जे जेकरा लेल सफलता अर्जन केलैथ,
तेकरे अबहेलना सहैक लेल बाध्य,
भीतरे-भीतर घुटैट-घुटैट,
दोसर के हंसी स घबराईत छैथ,
आ तहि पर किछ और खिसिया,
चांगुर पर चांगुर मारैत छैथ,
मुदा !
ईश्वर के रचना किछ और छैन,
हंसै बाला सदिखन हंसै छैथ,
आ ओ ओहिना दुखक गर्त में.....

मंगलवार, 28 मई 2013

सम्बन्धक अंकुरण में


सम्बन्धक अंकुरण में,
जे स्वांगक मैट मिल्बैत छैथ,
कुटिलताक मुस्की,
आ आरोपक चुश्की,
स कठोर प्रहार करैत छैथ,
से सायद बिसैर गेल छैथ,
जे बबुर रोपला स,
कांट धसबे टा करैत छै,
आ बिना स्नेह स सिंचित सम्बन्ध,
 समयक उतरार्ध में,
तिरस्कृत कांटक हाथ-पात बनबैत छै,
जे छूलो मात्र स घावे-घाव करैत छै,
बिधि के बिधान स,
कस्ट सहैत,
निरीह-सहज-सरल राम स,
हर युग में रावन मरै छै,
जे सब स पैघ आ बलशाली,
धनवान आ चालाक छै,
अपने अहंकार स,
अपन सर्वनाश करैत छै, 

मंगलवार, 14 मई 2013

सब स बरका रोग

हम पुत्रक पिता छि,
हमरो किछ मज़बूरी अईच्छ,
आ संक्रमित छि,
सब स बरका रोग स,
की कहत सब लोक स,
 हमरा त किछ नै चाही,
मुदा,
लोक लाज किछ होइत छैक,
जेबर बिहीन कन्या,
सुन्दर कोना लगती,
कुलीन छैथ, शुशील छैथ,
पढ़ल लिखल अस्थिर छैथ,
हमरा लेल सम्पूर्ण छैथ,
 मुदा,
हम कोना मुह देखायब,
समाज की कहत,
फल्लंl बाबू ,
जे पुतहु लौला,
तन स्वर्ण विहीन छैन,
मुद्रा माला हिन्,
विदुषी रंग विहीन,
धुर छि धुर छि धुर छि,
!!!!!!!!!!
आ एकटा अओर डर,
जे आदर्श विवाह स,
लोक-समाज अनुमान लगबैत छैथ,
जे जरूर लड़का में किछ ऐब हेतैक, 
आ याह बात हुनका दिन राति,
बिछुक डंकक टिस मारैत छैन,
 आ हुनकर दिमाग में,
धुर छि धुर छि धुर छि,
!!!!!!!!!!
सत्ते कहैत छि,
हम विश्मित छि,
पुत्रक पिताक दुःख स दुखित छि,
मुदा ई प्रश्न झक्झोरैत अई,
की समाज हुनका बाध्य करईत छैन ?
वा समाजक आर में वो समाज के,
अपन लोभ के नव-नव रंग स रंगी ढोरी क,
पुत्रक पिता बनबैत छैथ एक इंद्रजाल,
आ सम्पूर्ण समाज ओही जाल में फंशल,
एक दोसर के बारी के करैत छैथ इंतजार,
एक दोसर के बिना फसौने,
मुक्ति कहाँ अई सृष्टि सं,  
अद्भुत लीला अई,
विवाहक ई खेला अई,    

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

कोना रहब से मुश्किल भेल


कोना रहब से मुश्किल भेल,
अजब गजब माहौल भेल,
मुँह में राम छद्म मुस्कान,
बिनिमय गुण संपन्न चतुर,
सहज रंगक परत चढ़ौने,
संत बनी क आबैथ संग,
कोना चिन्हव से मुश्किल भेल,
एक मात्र उपाय बचल अई,
स्वाभाव आचरनक मेल बुझी त,
सुक्ष्म सजगताक अध्यन स,
सम्वेदनशीलता आ सहनशीलताक,
कसौटीक कठोर परिचय,
परत दर परत रंग उतारी,
विशुद्ध ज्ञान स जं पखारी,
सत्यक फेर अभाश भ जैत,
अजब गजब माहौलो में,
फेर रहव नै कठिन हैत,


बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

घटकैतिक सास्त्रक निर्माण


बरा अजगुत देखालोँ,
भांति-भांति के घटक देखालोँ,
घटकैतिक माया जाल देखालोँ,
सगा-संबंधिक चाल देखालोँ,
सुनैत छलहूँ,
अपन स आन भला,
आन स जंगल भला,
आ बिपतिये में होएत अछि,
स्नेही जनक परिचय,
समयक चक्र में चकृत,
देखालोँ सब कीछ बिष्मित,
मूल्य चुकैलौं,
सत्य टा स किछ बेसी नै पेलों,
मुदा !
सत्ये स सहजता,
आ सहजता स प्रसन्नता,
आ प्रसन्नता स सम्पन्नता,
अंतर अस्पष्ट करैत अई,
आ कहैत अई,
भोला बछरा दूध पियैत अई,
आ सयाना कौआ बिष्ठा,
समयक क्रम येह कहैत अई,
अनुभव सेहो येह देखैत अई,
मुदा !
भावी के विधान स,
ग्रसित वर वा कन्या परिवार के,
घटक आ सम्बन्धी,
घत्कैतिक आर में,
दुहैत छथी निर्ममता स,
इर्षा-द्वेष कुटिल मुश्की में छुपोने,
जरल मोन स जे,
हमरा स निक केकरो ने होए,
घत्कैतिक सास्त्रक निर्माण,
मैथिलक अनुसंधान अई,
बरा अजगुत देखालोँ,
ई एकटा बरका चमत्कार अई, 

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

दहेजक दंड सहहे पडत


विवाह कहीं दहेजक,
केकरो मजबुरिक नोरक,
विनाशक बैढ त नई अई,
जाही के निक्षेप पर,
संबंधक अंकुर पल्लवित होइत अई,
एक तरफ आभाव-विछराव,
दोसर तरफ खुशहालीक स्वागत,
ओहिना जहिना कमलाक बैढ,
एक तरफ कन्ना रोहट,
दोसर तरफ उन्नत फसल,
विडम्बना त विधाता के अई,
प्रकृत आ मन्नुख दुन्नु,
कमजोरे के छाती पर,
तांडव करैत छैथ,
विवाह “कन्यादान” सदा स,
कान्यक अपमान अई,
गौ दान, भू दान, मुद्रा दान,
स अलग विवाह दान “कन्यादान”,
दहेजक आर में,
लालच-लालचिक मुखौटाक पहचान अई,
विवाह सचमुच संस्कार नामक बैढ अई,
सच त यैह अई,
बैढक दहेजक विनाश स बचैक लेल,
सक्षम भ अर्थ विद्या बल स,
एक स्वाबलंबी बांध बनाऊ,
तिरस्कृत करू कन्या देव,
ओही पुरुषार्थ हिन् के,
जेकरा स्वयम ठाढ़ होवाक योग्यता नहीं,
मुदा हमरा पता अई,
ई दहेजक विनाशी बैढ,
हर साल आओत,
कियाकि स्त्रीक सुरक्षा लेल,
जहन अहाँ केकरो और पर आश्रित छि,
त मूल्य अहांके चुकावहे पडत,
दहेजक दंड सहहे पडत,