बुधवार, 25 मई 2011

सचक पथ


सच  याह अई
कि सचक पथ पर
शुले टा गड़त
मोन भीतरे भीतर सबटा सहत
कियाकि सच 
सहनायियेटाक ज्ञान भेटल अई
एकर बिपरीत
चालला 
शूल ने गड़त
कियाकि असहनशीलताक ज्ञान
पहिले  शूल के उखाड़वाक प्रयत्न करत

सृष्टिक खेल

बड़ा अद्भुत अई
राम एला
कृष्ण एला
गंगा सेहो अवतरित भेलीह
ग्रंथो सब लिखैल
एखैन धैर
पूजन वाचन चलैत अई
मुदा !
कोनो परिवर्तन नई भेल
मानव स्वाभाव  वैह रही गेल
कियाकि ?
मानव के रचना अहि लेल भेल अई
 मात्र एक टा लुकाछिपीक खेल अई
सृष्टि  श्रष्टाक अनंत चक्र अई

रविवार, 6 मार्च 2011

आऊ चलु


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 आऊ चलु,
हाथ पकरु,
मोन मिलाउ,
विश्वाष बढाऊ,
सत्यक सोझ दिशा में,
चलैत चलि … चलैत चलि,
प्रयाश करी,
एक दोसर के गीत सुनी,
एक दोसर के मीत बनी,
अहँ जरा,
ओकर भस्म लगा,
प्रेमक रश मे स्नान करी,
रँग रुप,
कोनो ऊँच नीच ने,
सहज भाव स,
झुमि ऊठी,
आँग-समाँग,
ज्ञाण-विज्ञान,
कला-श्रीजन के ध्यान करी,
जिवनक रौद-बसात के,
मोनक सब मलाल के,
भरीभरीक पिचकारी मे,
रंग स सराबोर करी,
जीवन पथ पर सँगे-सँगे,
चलैत रही...चलैत रही |